Tuesday, August 30, 2011

सूचना तो मिली नहीं, हांथ-पांव जरूर टूट गए

बाड़मेर : राजस्थान का सीमावर्ती जिला, जहां पर सरकारी योजनाओं का लाभ कभी मिल जाए तो बड़ी बात मानी जाती हैं, छोटे-बड़े भ्रष्टाचार यहाँ पर जम कर हावी हैं, लेकिन इस भ्रष्टाचार के खिलाफ एक युवक ने आरटीआई को हथियार बनाकर लड़ना चाहा, लेकिन अफ़सोस कि वो इस जंग में भ्रष्टाचारियो से हार गया। बाड़मेर के बामनोर गाँव कि यह घटना हैं जहां के निवासी मंगलाराम ने ग्राम पंचायत में इंदिरा आवास, मनरेगा योजना के घोटालों के खुलासे के लिए सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया लेकिन सूचना मिलने कि जगह उसके हाथ-पांव तोड़ दिए गए।


मंगला राम नहीं जानता कि वो वापस अपने पैरो पर खड़ा हो पाएगा या नहीं, क्यूंकि सूचना का अधिकार उसके लिए जानलेवा साबित हो गया। बाड़मेर के धोरीमन्ना के गाँव बामनोर निवासी मंगलाराम ने ग्राम पंचायत में हो रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोला और सूचनाए मांग ली, बस फिर क्या था गाँव के दबंग सरपंच को इस दलित युवक का यह कदम रास नहीं आया और उसको भरे गाँव की पंचायत के बीच मारने की नियत से पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और उसके हाथ पांव तोड़ डाले। अब करीब छह माह से मंगलाराम अपंगता का दंश झेलने को मजबूर हैं। मंगला राम का अब सरकार और सरकारी कानूनों से पूरा भरोसा उठ चुका हैं। उसके अनुसार जब सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने का परिणाम उसको उसे इस तरह से चुकाना पड़ा तो भी उसको सरकार या प्रशासन ने कोई मदद नहीं की, यहाँ तक की घोटालो की जांच भी करवाई गई तो भी आरोपी सरपंच के घोटाले साबित हुए और जांच टीम के द्वारा सरपंच को हटाने कि अनुशंसा की गई लेकिन राजनेताओं ने जांच बदलवा दी, ऐसे में उसका कोई नहीं रहा हैं, जो काफी दुखद हैं।

मंगला राम के अनुसार क्या उसने इस क़ानून को हथियार बना कर कोई गलती कर दी। बाड़मेर जिला मुख्यालय के सामने इस मामले को लेकर करीब ढाई माह तक धरना और अनशन भी चला था, लेकिन जांच के झूठे आश्वासन के अलावा कुछ भी इस पीड़ित को नसीब नहीं हुआ। यहाँ के ग्रामीणों की माने तो ग्राम पंचायत में पांच बार सरपंच बने इस आरोपी ने ग्राम पंचायत में सिवाय घोटालों के कुछ भी नहीं किया लेकिन राजनीतिक ताकत के चलते कोई इस का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाया हैं। हाथ-पैरों को तुड़वा चुके इस शख्स को अब किसी ना किसी प्रकार से हमेशा धमकियां मिल रही हैं लेकिन पुलिस, प्रशासन और सरकार इसको सुरक्षा देने की बजाय इस मामले से भागने का प्रयास कर रही हैं। दलित संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं यहाँ के जनप्रतिनिधि उदा राम मेघवाल के ओसार कई बार जांच के तहत दोषी पाए जाने के बावजूद भी आरोपी सरपंच को गिरफ्तार तो दूर की बात उससे पूछताछ भी नहीं की गई।

यक़ीनन जिस तरह की भूमिका इस मामले में प्रशासन और सरकार की रही हैं वो चौंकाने वाली हैं। जिस क़ानून के तहत बाड़मेर के इस शख्स ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मामला उठाया उस से भ्रष्टाचारी पूरी तरह से बौखला गए और उन्होंने इस के हाथ पांव तोड़ डाले। इस मामले में अरुणा रॉय और निखिल डे जैसे बड़े आरटीआई कार्यकर्ताओं ने भी हाथ डाला लेकिन सरकारी हठधर्मिता के आगे वे भी पंगु नज़र आये।
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बाड़मेर से दुर्ग सिंह राजपुरोहित की रिपोर्ट. Published in Bhadas4media.com on 30.08.2011

Wednesday, July 27, 2011

सूचनाधिकार का सामाजिक प्रभाव : राष्ट्रीय संगोष्ठी

वाराणसी, 16 जनवरी 2011.

जब आरटीआई एक्ट बनाया जा रहा था तो इसमें किसी भी प्रकार का शुल्क न रखने का प्रावधान किया जा रहा था। मगर बाद में एक टोकन मनी के रूप में 10 रूपये का शुल्क सिर्फ इसलिए रखा गया ताकि उसकी रसीद से ये पता चल जाए कि आवेदनकर्ता ने कब आवेदन दाखिल किया है। आरटीआई का शुल्क बढ़ाने की वकालत वो लोग करते हैं जो इस कानून के दुश्मन है। या फिर वो नहीं चाहते कि आम आदमी के हाथों में इतना बड़ा हथियार हो।
ये बातें महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में चल रहे दो दिवसीय सूचना का अधिकार-2005 के सामाजिक प्रभाव विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ओम प्रकाश केजरीवाल ने बतौर मुख्य अतिथि कहीं। महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान की ओर से आयोजित एवं यूजीसी द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी के समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए श्री केजरीवाल ने कहा कि लोग ये शिकायत करते हैं कि नौकरशाह सूचना नहीं देना चाहते। ऐसे लोगों को ये समझना चाहिए कि नौकरशाह का काम ही है सूचना देने में हीलाहवाली करना। लोग ये भी कहते हैं कि आरटीआई से भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। ऐसे लोगों को एक्ट को ध्यान से पढ़ना चाहिए जिसमें साफ लिखा है कि इस कानून को बनाने का उद्देश्य भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का है। श्री केजरीवाला ने ये भी कहा कि लोग अब आरटीआई के दुरूपयोग की बात करते हैं। ऐसे लोगों से पूछा जाना चाहिए कि देश में ऐसा कौन सा कानून है जिसका दुरूपयोग नहीं हो रहा है। मगर सिर्फ यही एक कानून है जिसका सबसे ज्यादा सदुपयोग हो रहा है। लाखों लोग इस कानून के जरिये सशक्त हुए हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि आरटीआई ऐसे लोगों के लिए ही बनी है जो आम जिंदगी में भ्रष्टाचार से रूबरू होते हैं। जैसे किसी का राशन कार्ड नहीं बन रहा, किसी का पासपोर्ट नहीं बन रहा है, किसी सड़क को बनाने में गुणवत्ता का ध्यान नहीं दिया गया। आरटीआई ऐसे भ्रष्टचार के मामलों में आम आदमी को लड़ने की शक्ति देता है। श्री केजरीवाल ने बताया कि इन दिनों ऐसे घटनाओं की काफी चर्चा है जिसमें सूचना मांगने वालों पर हमले हो रहे हैं। ऐसे ही लोगों को सहयोग, आत्मबल और सुरक्षा देने के लिए वाराणसी में काशी जन सूचना फाउण्डेशन की शुरूआत की है। इससे लोगों को जुड़ना चाहिए।
समारोह के विशिष्ट अतिथि नई दुनिया के यूपी हेड योगेश मिश्रा ने कहा कि आज सूचना अधिकार कानून के शुल्क में अनियमितता आ चुकी है। गृह मंत्रालय जहां 10 रूपये में सूचना दे रहा है वहीं राज्य सभा की सूचनाओं के लिए 250 रूपये शुल्क मांगा जा रहा है। जबकि हाई कोर्ट की सूचना प्राप्ति के समय व्यक्ति को 2500 रूपये तक शुल्क देना पड़ रहा है। ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि सरकारी मशीनरी नहीं चाहती कि लोगों के लिए सूचना आसान रहे। आज सूचना आयोग में ऐसे लोग बैठाये जा रहे हैं जो खुद दागदार हैं। इसपर हम सभी को बारीक निगाह रखनी होगी।
नई दुनिया के झारखण्ड हेड एवं आरटीआई एक्टिविस्ट विष्णु राजगढ़िया ने कहा कि अब तक नौकरशाह सिर्फ इसलिए हम पर हावी थी क्योंकि उनके पास कानूनी अधिकार के रूप में हथियार होते थे। मगर आरटीआई के रूप मंे अब आम आदमी को भी संविधान ने एक खतरनाक अधिकार दे दिया है तो नौकरशाह परेशान हैं। वो इस हथियार की धार को कुंद करना चाहते हैं। आम आदमी के साथ आरटीआई ने मीडिया को एक नया न्यूज सोर्स भी दिया है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता अशोक मेहता ने देश, समाज और मीडिया में भ्रष्टाचार के मामलों की विस्तार से चर्चा की। कहा, आरटीआई अभी एक ही पक्ष को कंट्रोल कर पा रहा है जबकि इसके दायरे में सब कुछ आना चाहिए।
बीएचयू पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 एच0ए0 आजमी ने कहा कि यदि हमारे पास सही सूचनाएं हो तो हम ज्यादा अच्छा निर्णय ले सकते हैं। जो सूचनाओं से दूर होता है, उसका नुकसान होता है। इतिहास भी इसका गवाह है। उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं मीडिया भी स्वत सूचनाओं के रास्ते में रोड़ा बन रही है जो ठीक नहीं।
पी0टी0आई0 झारखण्ड के प्रमुख इंदु कांत दीक्षित ने नई दिल्ली की संस्था पीसीआरएफ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि सूचना आयेाग में सूचना न देने के मामलों में से सिर्फ 3 ़17 प्रतिशत मामलों में ही दोषी अधिकारियों पर पेनाल्टी लगाई गयी। क्या इसी तरह सूचना अधिकार का भला हो रहा है।

अध्यक्षता करते हुए प्रेस काउंसिल के सदस्य एवं जनमोर्चा के सम्पादक शीतला सिंह ने कहा कि यदि समाज से भ्रष्टाचार को मिटाना है तो सबसे पहले हमें खुद को सुधारना होगा। ऐसा होता है तो शायद हमें किसी कानून की जरूरत न पड़े।
प्रारंभ में संस्थान के निदेशक एवं संगोष्ठी के चेयरमैन प्रो0 ओम प्रकाश सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि दो दिन के इस सेमिनार में आठ राज्यों के 25 विश्वविद्यालयों के करीब 400 लोगों ने प्रतिभाग किया जिसमें 22 सोर्स परसन के रूप में आमंत्रित रहे। सेमिनार के लिए 130 शोध पत्र पहले ही प्राप्त हो चुके हैं जिनका प्रकाशन बाद में पत्रिका के रूप मंे किया जाएगा। समापन सत्र में प्रेस काउंसिल सदस्य सुमन गुप्ता भी मौजूद रहीं।

इससे पहले अंतिम दिन दो तकनीकी सत्रों का आयोजन भी हुआ। इसमें सूचना का अधिकार मीडिया एवं लोकतंत्र विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता महर्षि दयानंद वि0वि0 के प्रो0 हरीश कुमार ने की। मुख्य वक्ता भड़ास डाट काम के प्रधान सम्पादक यशवंत ने मीडिया के अमीरी और गरीबी के खाचे में बंटे होने की चर्चा की। सत्र के संयोजक डा. गोपाल सिंह तथा रिपोर्टिंग अवधेश यादव ने की। इस सत्र में डा. पुरूषोत्तम पाण्डेय, डा. प्रेरणा त्रिपाठी, मो0 जावेद, चेतना, डा. धीरज कांत अनुपम कुमार गुप्ता सहित डेढ़ दर्जन लोगों ने शोध पत्र पढ़े।
दूसरा सत्र सूचना का अधिकार उद्भव, विकास, मीडिया एवं एनजीओ विषय पर हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो0 वीरेन्द्र व्यास ने की। मुख्य वक्ता पद से डा0 रमेश त्रिपाठी ने आरटीआई के पक्ष और विपक्ष दोनों बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए साबित किया कि इस कानून में सकारात्मक चीजें ज्यादा हैं और नकारात्मक चीजें तुलना मंे काफी कम हैं। सत्र संयोजक डा. रमेश यादव रहे और रिपोर्टिंग मो0 फरियाद ने की। इस सत्र में डा. प्रमथेश पाण्डेय, स्वतंत्र प्रकाश, डा. विनोद सिंह, डा0 संजीव गुप्ता, श्याम भद्र शरण आदि ने शोध पत्र पढ़े।
प्रो.ओमप्रकाश सिंह, निदेशक एवं चेयरमैन,राष्ट्रीय सेमिनार
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राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने जताई जनजागरूकता की जरूरत
अमर उजाला ब्यूरो
वाराणसी। सूचना का अधिकार भ्रष्टाचार मिटाने का सबसे सशक्त हथियार है। गरीब एवं शोषित जनता के बीच सरकारी तंत्र से उठते अविश्वास के मौजूदा दौर में यह कानून ही उनका सहारा बन रहा है। हालांकि नौकरशाही को यह पच नहीं रहा है लेकिन जिस दिन जनता जागरूक हो गई, उस दिन इसका महत्त्व और प्रभाव सामने आएगा। यह बातें पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ओमप्रकाश केजरीवाल ने कहीं। वह काशी विद्यापीठ में मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान की ओर से आयोजित ‘सूचना का अधिकार २००५ के सामाजिक प्रभाव’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
रविवार को अंतिम दिन दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। बतौर विशिष्ट अतिथि नई दुनिया के यूपी हेड योगेश मिश्रा ने कहा कि हर सूचना के लिए अलग-अलग शुल्क न होकर समान शुल्क की व्यवस्था होनी चाहिए।

नई दुनिया के झारखंड हेड विष्णु राजगढ़िया ने कहा कि आरटीआई ने आम आदमी के साथ मीडिया को भी नया न्यूज सोर्स दिया है। उत्तर प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता अशोक मेहता ने आरटीआई का दायरा बढ़ाने की वकालत की। पीटीआई के झारखंड प्रभारी इंदुकांत दीक्षित ने कहा कि अभी तक सिर्फ ३.१७ फीसदी दोषी अधिकारी ही दंडित किए जा सके हैं, जो चिंतनीय है।

अध्यक्षता करते हुए प्रेस काउंसिल के सदस्य शीतला सिंह ने कहा कि इस कानून के साथ खुद की मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा। भड़ास डॉट कॉम के संपादक यशवंत ने मीडिया के अमीरी-गरीबी के खांचे में बंटे होने की बात कही। संस्थान के चेयरमैन प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। महर्षि दयानंद विवि के प्रो. हरीश कुमार, प्रो. वीरेंद्र व्यास, डा. रमेश त्रिपाठी, प्रेस काउंसिल की सदस्य सुमन गुप्ता आदि ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन प्रदीप कुमार ने किया।

Tuesday, July 19, 2011

राइट टू सर्विस पर विकास भारती में चर्चा

गणमान्य नागरिकों ने दिये सुझाव
रांची: झारखंड में प्रस्तावित राइट टू सर्विस विधेयक पर विकास भारती में 19 जुलाई की शाम एक चर्चा का आयोजन किया गया। इसमें गणमान्य नागरिकों ने विधेयक को झारखंड के अनुरूप बेहतर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव दिये। इन सुझावों को झारखंड सरकार के पास विचारार्थ भेजा जायेगा। नागरिकों ने इसे सुशासन की दिशा में राज्य सरकार का महत्वपूर्ण कदम बताते हुए इसका स्वागत किया। अध्यक्षता करते हुए विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने कहा कि दुनिया भर में जनसामान्य को सरकारी सेवाएं समयबद्ध तरीके से देने के लिए सिटिजन चार्टर एवं राइट टू सर्विस कानून यानी सेवा पाने का अधिकार कानून बनाये जा रहे हैं। झारखंड सरकार की इस दिशा में सकारात्मक पहल है जिसे सफल बनाने के लिए नागरिकों को ठोस सुझावों के साथ आगे आना चाहिए।
प्रारंभ में सूचनाधिकार कार्यकर्ता डा.विष्णु राजगढि़या ने पावर प्वाइंट प्रेजेन्टेशन के माध्यम से झारखंड के प्रस्तावित राइट टू सर्विस विधेयक के प्रावधानों की जानकारी दी। उन्होंने मध्यप्रदेश, पंजाब, गोवा, बिहार इत्यादि राज्यों के राइट टू सर्विस कानूनों की चर्चा करते हुए बताया कि झारखंड में 18 प्रकार की सरकारी सेवाओं अथवा कार्यों को इस कानून के दायरे में रखा गया है।
चर्चा के दौरान गणमान्य नागरिकों ने अन्य लगभग 50 तरह की सरकारी सेवाओं अथवा कार्यों को इस कानून के दायरे में लाने का सुझाव दिया। नागरिकों के अनुसार किसी भी कानून के निर्माण के प्रारंभ के दौर में ही अगर सिविल सोसाइटी की भागीदारी सुनिश्चित कर ली जाये तो जनहित और देशहित या राज्यहित में बेहतर कानूनों का निर्माण संभव है। किसी भी विधेयक का प्रारूप सामान्यतः नौकरशाहों द्वारा तैयार किया जाता है। संभव है कि ऐसे प्रारूप महज प्रशासनिक एवं सीमित दृष्टि से बने हों जो ऐसे कानून के मकसद को सही तरीके से पूरा नहीं कर सकें। लेकिन अगर सिविल सोसाइटी की सकारात्मक भागीदारी हो तो सबकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए व्यापक सोच के साथ कानून बनाना संभव है। कोई कानून एक दिन के लिए नहीं बल्कि लंबे समय के लिए बनता है। रोज-रोज उसमें संशोधन भी संभव नहीं होता।
चर्चा में सबने एकमत से कहा कि झारखंड सरकार द्वारा इस विधेयक के प्रारूप पर नागरिकों से सुझाव मांगा जाना सकारात्मक कदम है जो इस प्रक्रिया में सिविल सोसाइटी की हिस्सेदारी सुनिश्चित करता है। नागरिकों ने भरोसा जताया कि इस चर्चा से निकले सुझावों पर झारखंड सरकार गंभीरता से विचार करेगी और जनहित व राज्यहित में व्यापक प्रावधानों वाला राइट टू सर्विस विधेयक विधानसभा के इसी सत्र में पारित किया जायेगा।
चर्चा में मुख्यतः झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव एमके मंडल, पूर्व डीजीपी आरआर प्रसाद, डाॅ. अजय सिंह, प्रो. आनंद भूषण, प्रो हरेश्वर दयाल, पवन बजाज, चंद्रेश्वर, पीएन सिंह, महेंद्र भगत, ललन शर्मा शामिल थे। चर्चा में आये सुझावों से सरकार को अवगत कराया जायेगा।

जमशेदपुर में उड़ी सूचना कानून की धज्जियां

* 21 पेज की सूचना के एवज में जिला सूचना अधिकारी ने मांगे बीस हजार
* यह गैर कानूनी है, आवेदक आयोग में आये तो कार्रवाई की जायेगी : सूचना आयोग
* सूचना के लिए प्रति कार्य दिवस 1038 रुपये न लेने के संबंध कोई अधिसूचना नहीं मिली : डीडीसी सह सूचना अधिकारी

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अशोक सिंह, जमशेदपुर
कहा जाता है कि कानून बनने के साथ ही कानून को तोड़ने के रास्ते भी ईजाद हो जाते हैं। झारखंड में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। सूचना कानून के जरिये नागरिक इसका भंडाफोड़ भी कर रहे हैं। लेकिन अधिकारियों ने सूचना कानून में सेंध लगाने का अच्छा बहाना ढूंढ लिया। झारखंड मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के आदेश का सहारा लेकर सूचना मांगने वाले लोगों का भयादोहन शुरू हो गया है। इसी कड़ी में जमशेदपुर के कदमा निवासी विनोद ठाकुर भी शामिल हैं। कुछ माह पूर्व सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत विनोद ठाकुर ने जमशेदपुर के उप विकास आयुक्त सह जन सूचना पदाधिकारी से वर्ष 2000 से सितंबर 2009 तक सांसद व विधायक निधि से किये गये विकास कार्यो की जानकारी मांगी थी। 121 पेज की सूचना के एवज में पूर्वी सिंहभूम के जिला योजना पदाधिकारी सह प्रभारी पदाधिकारी, विकास शाखा की ओर से 20, 000 रुपये अग्रिम राशि की मांग की गयी है। हालांकि वर्ष 2007-08 एवं 2008-09 में विधायकों व सांसदों द्वारा कराये गये विकास कार्यो की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करा दी गयी है। शेष जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आवेदक से 1038 रुपये प्रति कार्य दिवस के रूप में लगभग 20,000 रुपये अग्रिम राशि उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया है। इस संबंध में ध्यान देने की बात यह है कि सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदक से सिर्फ दो रुपये प्रति पेज व 50 रुपये प्रति सीडी ही लेने का प्रावधान है। लेकिन जिला योजना पदाधिकारी ने वांछित प्रतिवेदन को तैयार करने में काफी समय लगने का हवाला देते हुये 121 पन्नों की सूचना के लिए प्रति कार्य दिवस 1038 रुपये के हिसाब से 20,000 रुपये की मांग की है। इस संबंध में जिला सूचना पदाधिकारी सह उप विकास आयुक्त सीताराम बारी से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस संबंध में अभी तक कोई अधिसूचना नहीं मिली है। उधर आवेदक ने इस मामले की शिकायत झारखंड मुख्य सूचना आयुक्त व केन्द्रीय सूचना आयोग में कर दी है।यह समस्या मंत्रिमंडल (निर्वाचन) विभाग के आदेश से आयी है। आदेश गत पांच जून को राज्य के सभी जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह उपायुक्तों के पास भेजा गया था। यही आदेश सूचना के एवज में लंबी चौड़ी फीस मांगने का हथियार बन गया। हालांकि इस आदेश को राज्य सूचना आयोग ने निरस्त कर दिया है। लेकिन इसकी सूचना जिला प्रशासन को नहीं है।झारखंड राज्य सूचना के आयुक्त पीके महतो का कहना है कि फीस व लागत संबंधी नियम बनाने व ऐसे निर्देश निर्गत करने का अधिकार राज्य कार्मिक व प्रशासनिक विभाग के सिवाय और किसी को नहीं है।झारखंड आरटीआई फोरम के सचिव विष्णु राजगढि़या ने इस मामले को पूरी तरह से गैरकानूनी बताया है। इससे झारखंड की सूचना आयोग की अक्षमता साबित होती है। उन्होंने कहा कि प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त रामविलास गुप्ता के उदार रवैये के कारण ही सूचना कानून की हत्या हो रही है।
ashok-ashoksingh.blogspot.com

Sunday, July 17, 2011

BIHAR RIGHT TO SERVICE ACT

BIHAR RIGHT TO PUBLIC SERVICES ACT, 2011
[Bihar Act 4, 2011]


AN ACT To provide for the delivery of notified public services to the people of the State within the stipulated time limit and for matters connected therewith and incidental thereto.
BE it enacted by the Legislature of the State of Bihar in the sixty-second year of
the Republic of India as follows.-

1. Short title, extent and commencement.—
(1) This Act may be called the Bihar Right to Public Services Act, 2011.
(2) It shall extend to the whole of the State of Bihar.
(3) It shall come into force on such date as the State Government may, by notification
in the official Gazette, appoint.

2. Definitions.-
In this Act, unless the context otherwise requires:-
(a) "Appellate Authority" means an authority including one belonging to the local self government who is notified as such under Section-3;
(b) "Designated Public Servant" means an authority including one belonging to the local self government and organizations, fully or partially funded by the State Government, notified as such for providing the service under Section-3;
(c) "Eligible Person" means a person who is eligible for the notified service;
(d) "Prescribed" means prescribed by the rules made under this Act;
(e) "Reviewing Authority" means an authority including one belonging to the
local self government who is notified as such under Section-3;
(f) "Right to Public Service" means right to obtain the service notified by the government under this Act from time to time within the stipulated time limit as described under Section-4;
(g) "Service" means any service notified as per provisions under Section-3;
(h) "State Government" means the Government of Bihar;
(i) "Stipulated time limit" means maximum time to provide the service by the Designated Public Servant or to decide the appeal by the Appellate Authority and Reviewing Authority as notified under Section-3. ¬¬

3. Notification of services, Designated Public Servant, Appellate Authority, and Reviewing Authority and Stipulated Time Limits.-
The State Government may, from time to time, notify the services including provisions for fast track service delivery ("Tatkal Sewa"), Designated Public Servants, Appellate Authorities, Reviewing Authorities Stipulated Time Limits, and the area of the State to which this Act shall apply.

4. Right to obtain service within stipulated time limit.-
The designated public servant shall provide the service notified, under Section-3 to the person eligible to obtain the service, within the stipulated time limit.

5. Providing services in stipulated time limit. –
(1) Any application being filed for obtaining services notified under the Act will be treated as application under the Act. Stipulated Time Limit, if not explained otherwise in the notification under sec.-3 shall start from the date when required application for notified service is submitted to the Designated Public Servant or to a person subordinate to him/her authorized to receive the application. Such application shall be duly acknowledged.

(2) The Designated Public Servant on receipt of an application under subsection (1) shall within the Stipulated Time Limit provide service or reject the application and in case of rejection of application, shall record the reasons in writing and intimate to the applicant.

6. Appeal. –
(1) Any person, whose application is rejected under sub-section (2) of section-5 or who is not provided the service within the stipulated time limit, may file an appeal to the Appellate Authority within thirty days from the date of rejection of application or the expiry of the stipulated time limit. Filing of such appeal shall be duly acknowledged by the Appellate Authority by providing the Appellant signed receipt of the same:

Provided that the Appellate Authority may admit the appeal after the expiry of
the period of thirty days if he/she is satisfied that the appellant was prevented by
sufficient cause from filing the appeal in time: Provided further that in case of delay beyond the time limit stipulated by notification under section-3 the applicant may file an appeal against delay as per the provisions under this Act:
Provided further also that, in case of rejection of an application for a service for which any other law for the time being in force prescribes remedy, the applicant shall follow the process under such law for the time being in force.

(2) (a) The Appellate Authority may order the Designated Public Servant to provide the service within the specified period or may reject the appeal.
(b) Along with the order to provide service, the Appellate Authority may impose penalty according to the provisions of Section-7 of this Act.

(3) The Designated Public Servant or the Applicant aggrieved by any order of the
Appellate Authority, may make a second appeal within 60 (sixty) days from the date of that order to the Reviewing Authority, who shall dispose the appeal according to the prescribed procedure:
Provided that the Reviewing Authority may entertain the second appeal after the expiry of 60 (sixty) days, if he/she is satisfied that the appellant was prevented by sufficient cause from filing the appeal in time.

(4) If the designated public servant does not comply with provisions of the order
for providing the service under sub- section (2) of Section-6, then the applicant
aggrieved from such non-compliance may submit an application directly to the
Reviewing Authority. This application shall be disposed of in the manner prescribed for second appeal.

(5) The Appellate Authority and Reviewing Authority shall while deciding an appeal under this section, have the same powers as are vested in civil court while trying a suit under the Code of Civil Procedure, 1908 (5 of 1908) in respect of the following matters, namely :-
(a) requiring the production and inspection of documents;
(b) issuing summons for hearing to the designated public servant and appellant; and
(c) any other matter which may be prescribed.

(6) In any appeal proceedings, the onus to prove that a delay or denial of service
was justified shall be on the Designated Public Servant or the Appellate Authority, as the case may be, who delayed or denied the service.

7. Penalty.-
(l)(a) Where the Appellate Authority is of the opinion that the Designated Public Servant has failed to provide service without sufficient and reasonable cause, then he/she may impose a lump sum penalty at the rate specified from time to time as prescribed in the rules framed under this Act from time to time.

(b) Where the Appellate Authority is of the opinion that the Designated Public Servant has caused delay in providing the service, then he/she may impose a penalty at the rate specified from time to time and as prescribed in the rules framed under this Act from time to time for such delay on the Designated Public Servant:
Provided that the Designated Public Servant shall be given a reasonable
opportunity of being heard before any penalty is imposed on him/her.

(2) Where the Reviewing Authority is of the opinion that the Appellate Authority
has failed to decide the appeal within the stipulated time limit without any sufficient and reasonable cause, then he/she may impose a penalty on Appellate Authority at the rate specified from time to time and as prescribed in the rules framed under this Act:
Provided that the Appellate Authority shall be given a reasonable opportunity of being heard before any penalty is imposed on him/her.

(3) The penalty as imposed under the above provisions of the Act shall be charged from the Designated Public Servant, Appellate Authority and concerned Subordinate staff as the case may be, and in the proportion to be decided by the Appellate or Reviewing Authority, as the case may be, and as prescribed in the Rules framed under this Act from time to time.

(4) The penalty so imposed will be in addition to that prescribed in any other Act,
rules, regulations and notifications already existing.

8. Non-Compliance Amounting to Misconduct.-
Non-compliance of the orders of the Appellate Authority, unless pending in second appeal or modified by the Reviewing Authority, or of the orders of the Reviewing Authority shall amount to misconduct and makes the concerned person liable for actions under related provisions, including those that have been laid down for disciplinary action.

9. Bar of Jurisdiction of Courts.-
No Civil Court shall entertain any suit, application or other proceeding in respect of any order made under this Act and no such order shall be called in question otherwise than by way of an appeal as specified under this Act.

10. Power of the State Government to send the applications to Appellate Authority directly.-
Notwithstanding the other provisions of the Act, the State Government, if it gets an application alleging non-compliance of the provisions, may send the same directly to the Appellate Authority for taking further actions as per the Act.

11. Protection of action taken in good faith.-
No suit, prosecution or other legal proceeding shall lie against any person for anything which is in good faith done or intended to be done under this Act or any rule made thereunder.

12. Overriding effect of the Act.-
In relation to the services notified under this Act and its implementation, the provisions of this Act shall have effect notwithstanding anything inconsistent therewith in any other law for the time being in force or in any instrument having effect by virtue of any law other than this Act.

13. Powers to make rules.-
(1) The State Government shall, by notification in the official Gazette, make rules to carry out the provisions of this Act.

(2) Every rule made under this Act by the State Government shall be laid before
the State Legislature.

14. Power to remove difficulties.-
If any difficulty arises in giving effect to the provisions of this Act, the State Government may by order, not inconsistent with the provisions of this Act, remove the difficulty.

By order of the Governor of Bihar,
OM PRAKASH SINHA,
Joint Secretary to Government.

Jharkhand Right to Service Bill (Notice)

झारखण्ड सरकार
कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग,

झारखण्ड राज्य सेवा देने की गारंटी विधेयक (Right to Service Bill)
प्रारूप पर सुझाव देने हेतु अनुरोध

राज्य सरकार ‘‘झारखण्ड राज्य सेवा देने की गांरटी विधेयक‘‘ कानून बनाने के लिए कृतसंकल्प है और इससे संबंधित विधेयक को आगामी विधानमंडल सत्र में लाने हेतु प्रयास किया जा रहा है। इस विधेयक के प्रारूप को कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, झारखण्ड सरकार के वेबसाईट पर देखा जा सकता है। साथ-ही-साथ इस अधिनियम के अंतर्गत प्रथम चरण में शामिल की जाने वाली प्रस्तावित सेवाओं के लिए निर्धारित समयावधि आदि से सम्बन्धित सूची भी उक्त बेवसाईट पर डाल दी गयी है, आम-जन अपनी प्रतिक्रिया/सुझाव प्रधान सचिव, कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, झारखण्ड, राँची के ई-मेल पता sec-pers-jhr@nic.in पर दे सकते है।

2. इस प्रस्तावित विधेयक की मुख्य-मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार है:-
(i) राज्य सरकार समय-समय पर उन सेवाओं को अधिसूचित करेगी, जिसे इस कानून के अंतर्गत लागू करना है। साथ ही नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी (Designated Officer), प्रथम अपीलीय पदाधिकारी एवं द्वितीय अपीलीय प्राधिकार तथा सेवाओं को प्रदान करने की निर्धारित समय-सीमा को भी अधिसूचित किया जायगा।

(ii) Designated Officer को निर्धारित समय-सीमा के अंदर सेवाओं को प्रदान करना है और नहीं दिये जाने की स्थिति में कोई भी व्यक्ति प्रथम अपीलीय पदाधिकारी के यहाँ जा सकता है, जहाँ से Designated Officer को निर्देशित किया जा सकेगा कि आवश्यक सेवा उपलब्ध करायी जाय।

(iii) इसके पश्चात् भी यदि सेवा नहीं प्रदान की जाती है तो द्वितीय अपीलीय प्राधिकार के कार्यालय में आवेदन दिया जा सकता है, जहाँ से निम्न निर्णय हो सकते है:-
(क) Designated Officer को निर्धारित अवधि के अंदर सेवा उपलब्ध कराने का आदेश दिया जा सकता है।
(ख) Designated Officer एवं अन्य पर दंड लगाया जा सकता है।
(ग) प्रतिदिन देरी के लिए भी 250/- रू0 प्रतिदिन की दर से दंड लगाया जा सकता है, जो अधिकतम 5000/-रू0 की सीमा के अन्तर्गत होगा।
(घ) व्यतिक्रमी पदाधिकारी/कर्मी के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई के लिए भी सक्षम प्राधिकार को अनुशंसा की जा सकती है।

(iv) राज्य सरकार के पास यदि कोई आवेदन आता है जिसमें सेवा निर्धारित समय-सीमा के अंदर नहीं किये जाने की शिकायत हो, तो राज्य सरकार को यह शक्ति होगी कि उस आवेदन को सीधे ही द्वितीय अपीलीय प्राधिकार को इस अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई करने के लिए भेज दे।

(v) सार्वजनिक रूप से उक्त विधेयक के सम्बन्ध में आमजनों को अवगत कराने हेतु विधेयक का प्रारूप सभी उपायुक्तों/अनुमण्डल पदाधिकारियों को सूचना पट पर प्रकाशन हेतु प्रेषित किया जा रहा है। आम-जन विधेयक के संबंध में सुझाव या प्रतिक्रिया संबंधित जिला के उपायुक्त/ अनुमण्डल कार्यालय में दे सकते हैं।
3. विधेयक के संबंध में अपनेे सुझाव/प्रतिक्रिया ई-मेल sec-pers-jhr@nic.in के माध्यम से अथवा निम्न पते पर भी भेजे जा सकते है। आशा है कि आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया/सुझाव सूचना प्रकाशन के 10 दिन के भीतर प्राप्त होंगे जो इस विधेयक प्रारूप को और अधिक परिष्कृत एवं प्रभावी बनाने में सहायक सिद्ध होंगे।

(आदित्य स्वरूप) प्रधान सचिव, कार्मिक, प्र0सु0 तथा राजभाषा विभाग।
ज्ञापांक-2/विविध-11-13/2011 का॰ 3805/ राँची, दिनांक 08 जुलाई, 2011

Jharkhand Right to Service Bill (Hindi)

झारखण्ड राज्य सेवा देने की गारंटी विधेयक, 2011 (विधेयक प्रारूप)
राज्य की जनता को नियत समय-सीमा में सेंवाएँ उपलब्ध कराने हेतु और उससे संबंधित
एवं आनुषंगिक मामलों का उपबन्ध करने के लिए एक विधेयक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार एवं प्रारम्भ ।
(1) यह अधिनियम, ‘झारखण्ड राज्य सेवा देने की गारंटी अधिनियम, 2011‘ कहा जा सकेगा।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण झारखण्ड राज्य में होगा।
(3) यह ऐसी तिथि से प्रवृत्त होगा जैसा कि राज्य सरकार, राजकीय गजट में अधिसूचना द्वारा, नियत करें।

2. परिभाषाएँ।
इस अधिनियम में, यदि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:-
‘‘(क) नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी‘‘ से अभिप्रेत है धारा-3 के अधीन सेवा उपलब्ध करने के लिए इस रूप में अधिसूचित कोई प्राधिकार और इनमें स्थानीय स्वायत्त शासन का कोई शामिल है;
(ख) ‘‘ पात्र व्यक्ति‘‘ से अभिप्रेत ऐसे व्यक्ति से है जो अधिसूचित सेवा के लिए पात्र हो;
(ग) ‘‘प्रथम अपीलीय पदाधिकारी‘‘ से अभिप्रेत है कोई प्राधिकार जो धारा-3 के अधीन इस रूप में अधिसूचित किया जाय और इसमें स्थानीय स्वायत्त शासन का कोई शामिल है;
(घ) ‘‘विहित‘‘ से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन बनी नियमावली द्वारा विहित;
(ड़)‘‘सेवा का अधिकार‘‘ से अभिप्रेत है धारा-3 के अधीन अधिसूचित कोई सेवा;
(च) ‘‘द्वितीय अपीलीय प्राधिकार‘‘ से अभिप्रेत है कोई प्राधिकार जो धारा-3 के अधीन इस रूप में अधिसूचित किया गया और इसमें स्थानीय स्वायत्त शासन का कोई शामिल है;
(छ) ‘‘राज्य सरकार‘‘ से अभिप्रेत है झारखण्ड सरकार;
(ज) ‘‘नियत समय-सीमा‘‘ से अभिप्रेत है धारा-3 के अधीन अधिसूचित नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी द्वारा सेवा उपलब्ध कराने या प्रथम अपीलीय पदाधिकारी द्वारा अपील का विनिश्चय करने हेतु अधिकतम समय।

3. नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी, प्रथम अपीलीय पदाधिकारी, द्वितीय अपीलीय प्राधिकार तथा नियम समय सीमा की अधिसूचना।
राज्य सरकार, समय-समय पर सेवाओं, नामनिर्दिष्ट पदाधिकारियों प्रथम अपीलीय पदाधिकारियों, द्वितीय अपीलीय प्राधिकारों तथा नियत समय-सीमाओं राज्य का क्षेत्र जहाँ यह अधिनियम लागू होगा, को अधिसूचित करेगी।

4. नियत समय-सीमा में सेवा प्राप्त करने का अधिकार।
नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी, नियत समय-सीमा में, सेवा प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति को धारा-3 के अधीन अधिसूचित सेवा उपलब्ध करायेगा।

5. नियम समय-सीमा में सेवाएँ उपलब्ध कराना।
(1) अधिनियम के अधीन अधिसूचित सेवाओं के लिए समर्पित किये गये किसी आवेदन को अधिनियम के अधीन आवेदन माना जायेगा। नियत समय-सीमा, यदि धारा-3 के अधीन अधिसूचना में अन्यथा स्पष्ट नहीं किया हुआ है तो, उस तिथि से प्रारम्भ होगी जब अधिसूचित सेवा के लिए अपेक्षित आवेदन नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी को या उसके अधीनस्थ आवेदन प्राप्त करने के लिए प्राधिकृत किसी व्यक्ति को समर्पित किया जाय। ऐसे आवेदन की सम्यक रूप से अभिस्वीकृति दी जायेगी।
(2) उपनियम (1) के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी नियत समय-सीमा में सेवा उपलब्ध करायेगा या आवेदन अस्वीकृत करेगा और आवेदन की अस्वीकृति की दशा में कारणों को लेखन द्वारा अभिलिखित करेगा और आवेदक को सूचित करेगा।

6. अपील
(1) कोई व्यक्ति, जिसका आवेदन धारा-5 की उपधारा (2) के अधीन अस्वीकृत किया जाता है या जिसे नियत समय-सीमा में सेवा उपलब्ध नहीं की जाती है, आवेदन की अस्वीकृति, की तिथि या नियम समय-सीमा की समाप्ति के तीस दिनों के अन्दर प्रथम अपीलीय पदाधिकारी के समक्ष अपील दाखिल कर सकेगा:
परन्तु यह कि प्रथम अपीलीय पदाधिकारी तीस दिनों की अवधि की समाप्ति के बाद भी अपील ग्रहण कर सकेगा यदि वह सन्तुष्ट हो कि अपीलकत्र्ता को समय पर अपील दाखिल करने से पर्याप्त कारणों से रोका गया था।
(2) प्रथम अपीलीय पदाधिकारी नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी को विनिर्दिष्ट अवधि में सेवा उपलब्ध कराने के लिए आदेश दे सकेगा या अपील नामंजूर कर सकेगा।
(3) प्रथम अपीलीय पदाधिकारी के विनिश्चय के विरूद्ध द्वितीय अपील विनिश्चय किये जाने की तिथि से साठ दिनों के अन्दर, द्वितीय अपीलीय प्राधिकार के समक्ष होगी:
परन्तु यह कि द्वितीय अपीलीय प्राधिकार साठ दिनों की अवधि की समाप्ति के बाद भी अपील ग्रहण कर सकेगा यदि वह सन्तुष्ट हो कि अपीलकत्र्ता को समय पर अपील दाखिल करने से पर्याप्त कारणों से रोका गया था।
(4) (क) द्वितीय अपीलीय प्राधिकार नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी को ऐसी अवधि के अन्दर सेवा उपलब्ध करने का आदेश दे सकेगा जैसा वह विनिर्दिष्ट करे या अपील नामंजूर कर सकेगा।
(ख) सेवा उपलब्ध करने के आदेश के साथ, द्वितीय अपीलीय प्राधिकार, धारा-7 के प्रावधानों के अनुसार दंड अधिरोपित कर सकेगा।
(5) (क) यदि नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी धारा-5 की उपधारा (1) का अनुपालन नहीं करता है तो ऐसे अनुपालन से व्यथित आवेदक प्रथम अपीलीय पदाधिकारी को सीधे आवेदन समर्पित कर सकेगा। इस आवेदन का निष्पादन प्रथम अपील की रीति से किया जायेगा।
(ख) यदि नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी धारा-6 की उपधारा (2) के अधीन सेवा उपलब्ध करने के आदेश का अनुपालन नहीं करता है तो ऐसे अनुपालन से व्यथित आवेदक द्वितीय अपीलीय प्राधिकार को सीधे आवेदन समर्पित कर सकेगा। इस आवेदन का निष्पादन द्वितीय अपील की रीति से किया जायेगा।
(6) इस धारा के अधीन किसी अपील का विनिश्चय करते समय प्रथम अपीलीय पदाधिकारी तथा द्वितीय अपीलीय प्राधिकार को निम्नांकित मामलों में, वही शक्तियाँ होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद के विचारण के समय किसी सिविल कोर्ट को होता है, यथा -
(क) दस्तावेजों की प्रस्तुत करने एवं निरीक्षण की अपेक्षा करने;
(ख) नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी एवं अपीलकत्र्ता को सुनवाई के लिए सम्मन जारी करने; तथा
(ग) कोई अन्य मामला जो विहित किया जाय।

7. दंड।
(1) (क) जहाँ द्वितीय अपीलीय प्राधिकार की राय हो कि नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी बिना पर्याप्त एवं युक्तियुक्त करणों के, सेवा उपलब्ध करने में असफल रहा है, तो वह कोई एकमुश्त दंड अधिरोपित कर सकेगा जो पाँच सौ रूपये से कम नहीं एवं पाँच हजार रूपये से अधिक नहीं होगा।
(ख) जहाँ द्वितीय अपीलीय प्राधिकार की राय हो कि नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी ने सेवा उपलब्ध करने में विलम्ब किया है, तो वह ऐसे विलम्ब के लिए दो सौ पचास रूपये प्रतिदिन की दर से नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी पर दंड अधिरोपित कर सकेगा जो पाँच हजार रूपये से अधिक नहीं होगाः
परन्तु यह कि उसपर कोई दंड अधिरोपित किये जाने के पूर्व नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी को सुनवाई की युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया जायेगा।
(2) जहाँ द्वितीय अपीलीय प्राधिकार की राय हो कि प्रथम अपीलीय पदाधिकारी, बिना किसी पर्याप्त एवं युक्तियुक्त कारणों के, नियत समय-सीमा में अपील का विनिश्चय करने में असफल रहा है, तो वह प्रथम अपीलीय पदाधिकारी पर कोई दंड अधिरोपित कर सकेगा जो पाँच सौ रूपये से कम नहीं तथा पाँच हजार से अधिक नहीं होगा:
परन्तु यह कि उस पर कोई दंड अधिरोपित किये जाने के पूर्व प्रथम अपीलीय पदाधिकारी को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया जायेगा।
(3) द्वितीय अपीलीय प्राधिकार यथास्थिति उपधारा (1) या (2) या दोनों, के अधीन अधिरोपित दंड में से अपीलकत्र्ता को ऐसी राशि क्षतिपूर्ति के रूप में देने का आदेश दे सकेगा, जो अधिरोपित दंड से अधिक नहीं होगा।
(4) यदि द्वितीय अपीलीय प्राधिकार सन्तुष्ट हो कि नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी या प्रथम अपीलीय पदाधिकारी इस अधिनियम के अधीन सौंपे गये कत्र्तव्यों का निर्वहन करने में, बिना किसी पर्याप्त एवं युक्तियुक्त कारणों के, असफल रहा हो, तो वह उसके विरूद्ध, उस पर लागू सेवा नियमों के अधीन, अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा कर सकेगा।
(5) अधिरोपित ऐसा दंड पूर्व से अस्तित्व वाले किसी अन्य अधिनियम, नियमावली, विनियमावली एवं अधिसूचनाओं में विहित किये गये के अतिरिक्त होगा।

8. दंड राशि की वेतन से कटौती ।
धारा-7(1) या 7(2) के अधीन अधिरोपित ऐसे दंड की कटौती नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी तथा प्रथम अपीलीय पदाधिकारी एवं उनके संबंधित अधीनस्थ कर्मचारियों के वेतन से, उनकी सेवा संबंधी क्षेत्राधिकार वाले विभाग द्वारा आनुपातिक रूप से की जायेगी। संबंधित विभाग, नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी तथा प्रथम अपीलीय पदाधिकारी एवं उनके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा धारण किये जाने वाले दंड क अनुपात के विस्तृत विवरण के प्रयोजनार्थ स्थायी अनुदेश जारी करेगा।

9. पुनरीक्षण
इस अधिनियम के अधीन दंड अधिरोपित किये जाने संबंधी द्वितीय अपीलीय प्राधिकार के किसी आदेश से व्यथित नामनिर्दिष्ट पदाधिकारी या प्रथम अपीलीय पदाधिकारी, ऐसे आदेश की तिथि से साठ दिनों की अवधि के अन्दर, पुनरीक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा मनोनीत पदाधिकारी के समक्ष आवेदन कर सकेगा, जो विहित प्रक्रिया के अनुसार आवेदन का निष्पादन करेगा:
परन्तु यह कि राज्य सरकार द्वारा मनोनीत पदाधिकारी साठ दिनों की अवधि की समाप्ति के बाद भी आवेदन ग्रहण कर सकेगा, यदि वह सन्तुष्ट हो कि पर्याप्त कारणों से आवेदन समय पर समर्पित नहीं किया जा सका।

10. राज्य लोक सेवा परिदान आयोग का गठन।
राज्य सरकार, राज्यकीय गजट में अधिसूचना द्वारा, विहित संरचनायुक्त एक राज्य लोक सेवा परिदान आयोग का गठन करेगी, और उसे इस अधिनियम के उद्देश्य की पूर्ति के लिए कृत्य सौंपेगी।

11. द्वितीय अपीलीय प्राधिकार को सीधे आवेदन भेजने की राज्य सरकार को शक्ति।
अधिनियम के अन्य प्रावधानों के होते हुए भी, यदि राज्य सरकार प्रावधानों के अनुपालन के आरोपों संबंधी आवेदन प्राप्त करती है तो उसे वह सीधे द्वितीय अपीलीय प्राधिकार को, अधिनियम के अनुसार अग्रतर कार्रवाई के लिए भेज सकेगी।

12. सद्भाव में की गयी कार्रवाई का संरक्षण ।
किसी भी व्यक्ति के विरूद्ध किसी ऐसी चीज के लिए, जिसे इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये किसी नियम के अधीन सद्भाव में किया गया हो, कोई वाद, अभियोजन या अन्य न्यायिक कार्यवाही नहीं की जायेगी।

13. नियमावली बनाने की शक्ति।
(1) राज्य सरकार राजकीय गजट में अधिसूचना द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के प्रयोजनों को पूरा करने के लिए नियमावली बना सकेगी।
(2) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम राज्य विधान मंडल के समक्ष रखा जायेगा।

14. कठिनाईयाँ दूर करने की शक्ति ।
यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो राज्य सरकार, राजकीय गजट में प्रकाशित आदेश द्वारा, जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हो, कठिनाई दूर कर सकेगी:
परन्तु यह कि ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के लागू होने से दो वर्षों की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जायेगा।